गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) क्या है | क्यों मनाते है | कहानी | पूरी जानकारी

गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) से सम्बन्धित जानकारी

गोवर्धन पूजा दिवाली के दूसरे दिन मनाई जाती है गोवर्धन पूजा का त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है| इस दिन प्रकृति के आधार पर गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है यह पूजा मानव तथा प्रकृति के बीच अटूट सम्बन्ध को दर्शाता है| दिवाली की भांति इस पूजा का भी विशेष महत्व है यह पूजा द्वापर युग से चली आ रही है इस पूजा का भारतीय जीवन में विशेष महत्व रखती है|

पूर्व उत्तर भारत में तथा विशेष रूप से मथुरा के आस-पास के क्षेत्रो में यह पूजा बड़े ही धूम-धाम से मनाई जाती है, इस पूजा का प्रारम्भ भगवान श्री कृष्ण के द्वारा हुआ था तथा यह दिन श्री कृष्ण के लिए ही मनाया जाता है गोवर्धन पूजा के साथ इस दिन  बलि पूजा, मार्गपाली आदि उत्सवों भी मनाये जाते है,इस पोस्ट में आपको “गोवर्धन पूजा क्या है? क्यों मनाते है, कहानी, पूरी जानकारी”  उपलब्ध कराई गयी है|

गोवर्धन पूजा क्या है? (Govardhan Puja )

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के नाम से भी मानते है, यह कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन अन्नकूट की पूजा की जाती है, इस दिन गायो की पूजा की जाती है| शास्त्रों के अनुसार गंगा नदी के समान ही गाय भी उतनी ही पवित्र है गाय देवी लक्ष्मी का स्वरूप है, देवी लक्ष्मी के द्वारा जिस प्रकार धन तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है, उसी प्रकार गाय के दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्राप्त होता है| गाय का बछड़ा बैल बनकर खेती में किसानो की सहायता करता है| इस प्रकार गाय सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूज्यनीय है|

इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतिरूप बनाकर उसकी पूजा की जाती है| यह ब्रज वासियो का मुख्य त्योहार है| विष्णु भगवान के द्वारा श्री कृष्ण के रूप में अवतार लेने के बाद द्वापर युग से इस पूजा का प्रारम्भ हुआ है | भगवान श्री कृष्ण ने 7 दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा ऊँगली में उठाकर ब्रज वासियो की रक्षा मूसलाधार वर्षा से की थी, तभी से गोवर्धन पूजा की प्रथा चली आ रही है|

दिवाली (Diwali) क्या है

गोवर्धन पूजा विधि (Method of Worship of Govardhan Puja )

गोवर्धन पूजा के दिन सुबह घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ की परिकल्पना बनाई जाती है| परिकल्पना को फूल पत्तियों से सजाया जाता है, इस दिन भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजन बनाये जाते है, तथा इन व्यंजनों का भोग लगाया जाता है| दीप, दूध, दही, खील, खिलौना, मिठाई आदि से भोग लगाया जाता है, तथा धूप एवं दीप से आरती की जाती है, तथा संध्या कॉल में इसी गोबर को गोवर्धन पर्वत का रूप देकर घर के द्वार पर साज-सज्जा करके रखा जाता है तथा दीप जलाया जाता है|

ग्रामीण क्षेत्रो में गाय, बैल आदि पशुओ को नहलाकर उन्हें सजा कर इनकी भी पूजा की जाती है| पशुओ को फूलमाला पहना कर तिलक लगाया जाता है तथा धूप के द्वारा आरती कर गुड़-चना खिलाया जाता है|

गोवर्धन पूजा क्यों करते है? (Why do Govardhan Puja)

पुराणों के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज वासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने  के लिए 7  दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी  कनिष्ठा उंगली पर उठाया हुआ था तथा सुदर्शन चक्र ने तेज वर्षा में भीगने से सभी गोप-गोपिकाओ तथा पशुओ को बचाया था| 7 दिन तक उसकी छाया में सुखपूर्वक सभी लोगो ने दिन व्यतीत किये थे|

सातवें दिन भगवान श्री कृष्ण ने वर्षा बंद होने के बाद गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रज वासियो को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने के लिए कहा तभी से गोवर्धन पूजा के बाद अन्नकूट का पर्व मनाया जाता है| इस दिन बेसन, गेहू, चावल से बने व्यंजनों की पूजा की जाती है|

कुसुम योजना (Kusum Yojana) क्या है

गोवर्धन पूजा की प्रचलित कथा (Popular Story of Govardhan Puja)

गोवर्धन पूजा के विषय में एक लोक कथा प्रचलित है, एक बार श्रीकृष्ण गोप−गोपिकाओ के साथ गायो को चराते हुए वह गोवर्धन पर्वत की तराई में पहुंचे गए|  वहां उन्होंने देखा किसभी लोग उत्सव की तैयारी में लगे हुए है वहा पर छप्पन प्रकार के भोजन बनाये जा रहे है| धूम-धाम से उत्सव की तैयारी चल रही है| श्रीकृष्ण के पूछने पर गोपियों ने बताया कि मेघों के स्वामी भगवान इन्द्र को प्रसन्न रखने के लिए प्रतिवर्ष यह उत्सव ब्रज में मनाया जाता है| पूजा से प्रसन्न होकर इन्द्र भगवान वर्षा करते है, इससे अच्छी फसल होती है, तथा जिसके द्वारा सभी का भरण पोषण होता है|

श्रीकृष्ण के कहा इन्द्र से अधिक शक्तिशाली गोवर्धन पर्वत है, यहाँ हमारी गाये चरती है, यदि देवता इन्द्र में शक्ति है तो प्रत्यक्ष आकर भोग लगाएं। श्रीकृष्ण ने कहा, वर्षा तो गोवर्धन पर्वत के कारण होती है, हमें इन्द्र के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। श्री कृष्ण की बात मान कर सभी ब्रजवासियो ने इन्द्र के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा की | नारद ऋषि के द्वारा इन्द्र को जब पता चला कि इस वर्ष उनकी  पूजा के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा की जा रही है जिससे वह क्रोधित हो गये और उन्होंने कुपित होकर मेघों को आज्ञा देदी कि गोकुल में जाकर भारी वर्षा करे जिससे प्रलय आ जाये|

मेघ ने इन्द्र की आज्ञा के अनुसार मूसलाधार वर्षा करना प्रारम्भ कर दिया| श्रीकृष्ण ने सब गोप−गोपियों को आदेश दिया कि सभी लोग अपने गायों, बछड़ों तथा पशुओ  के साथ गोवर्धन पर्वत की तराई में आ जाये| गोवर्धन पर्वत ही मेघों से सभी की रक्षा करेंगे। सभी की वर्षा से रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ उंगली पर धारण कर लिया| सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण में रहे। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं गिरी सकी।

ब्रह्माजी के द्वारा इन्द्र को ज्ञात हो गया की श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार है,वह कोई साधारण मनुष्य नहीं है| जिसके बाद इन्द्रदेव बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा प्रार्थना की | तब से गोवर्धन पूजा का पर्व बड़े श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है|

यहाँ पर आपको गोवर्धन पूजा क्या है? क्यों मनाते है, इस विषय में जानकारी उपलब्ध कराई गयी है अब उम्मीद करता हू आपको पसंद आएगी |

मिशन प्रेरणा क्या है