One Nation One Election Bill 2023 : One Nation One Election Bill In Hindi|

One Nation One Election Bill Kya Hai

भारत में समस्त राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। लेकिन 2023 में भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने ‘वन नेशन, वन एलेक्शन’ बिल संसद के विशेष सत्र में पास कराने की मांग की है। यह विशेष सत्र 18 से 22 सितंबर तक बुलाया जा रहा है। संसदीय कार्यमंत्री के अनुसार इसी सत्र में इस बिल को पास करवाया जाएगा। अर्थात सम्पूर्ण भारत के विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होंगे। One Nation One Election Bill 2023 पर कार्य शुरू करने के कमेटी का गठन किया गया है। सरकार ने इस कमेटी की अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपने का फैसला किया है।

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‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल क्या है

वन नेशन वन इलेक्शन का तात्पर्य सम्पूर्ण भारत देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होना है। अर्थात मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना मतदान करेंगे। दरअसल आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।और भारत के सभी राज्यों में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग अलग होने लगे।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल के लाभ

लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने से सार्वजनिक धन की बचत होगी।
देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव कराए, तो इससे करोड़ों रुपए बचाए जा सकते हैं।
इसके साथ ही बार-बार चुनाव आचार संहिता न लगने की वजह से डेवलपमेंट वर्क पर भी असर नहीं पड़ेगा।
प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर बोझ कम होगा और यह सुनिश्चित होगा सरकारी नीतियों का बेहतर कार्यान्वयन है।
एक साथ चुनाव कराने से देश के प्रशासन को चुनाव प्रचार के बजाय विकास संबंधी गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी।

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल के नुकसान

कुछ लोगो का मानना है कि एक देश, एक चुनाव देश के संघीय ढांचे के विपरीत और संसदीय लोकतंत्र के लिए घातक कदम है।
इससे कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल उनकी इच्छा के विरुद्ध बढ़ेगा या घटेगा, जिससे राज्यों की स्वायत्तता पर असर पड़ सकता है।
कुछ लोगों का मानना ​​है कि अगर ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ होंगे तो राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे प्रभावित हो सकते हैं।
यह भी कहा जा रहा है कि एक साथ चुनाव से क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान हो सकता है।
कारण यह बताया गया है कि इससे मतदाताओं के एक दिशा में वोट करने की संभावना बढ़ जाएगी, जिससे केंद्र सरकार में प्रमुख पार्टी को अधिक लाभ प्राप्त होगा।

‘वन नेशन, वन एलेक्शन’ का विचार 

बता दें, ‘वन नेशन, वन एलेक्शन’ का विचार 1983 से ही अस्तित्व में है, जब चुनाव आयोग ने पहली बार इस पर विचार किया था। हालांकि, 1967 तक भारत में एक साथ चुनाव आम बात थी। हालांकि 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह चक्र बाधित हो गया। 1970 में लोकसभा समय से पहले ही भंग कर दी गई और 1971 में नए चुनाव हुए। इस तरह से पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा को पूरे पांच साल का कार्यकाल मिला।

देश में वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने की प्रक्रिया

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील विराग गुप्ता के मुताबिक विधि आयोग ने इस बारे में संशोधनों के विवरण के साथ अप्रैल, 2018 में पब्लिक नोटिस जारी किया था। इस विधि आयोग के अनुसार वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव से संविधान के अनुच्छेद 328 पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए अधिकतम राज्यों का अनुमोदन लेना पड़ सकता है।

संविधान के अनुच्छेद 368(2) के अनुसार, ऐसे संशोधन के लिए न्यूनतम 50% राज्यों के अनुमोदन की आवश्यकता होती है, लेकिन ‘एक देश, एक चुनाव’ के माध्यम से हर राज्य की विधानसभा के अधिकार और कार्यक्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं।

इसलिए इस मामले में सभी राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदन लेने की आवश्यकता पड़ सकती है। इसके बाद जनप्रतिनिधित्व कानून समेत कई दूसरे कानून में संशोधन किये जाएंगे।

30 अगस्त 2018 में न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले विधि आयोग के अनुसार, कि संविधान के मौजूदा ढांचे के तहत देश में वन नेशन वन इलेक्शन नहीं करा सकते हैं। इसके लिए संविधान का जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में बदलाव की आवश्यकता होगी। इसके अतिरिक्त लोकसभा व विधानसभाओं के संचालन के लिए बने नियमों में भी संशोधन की ज़रुरत है।