Alankar Kise Kahate Hain: जैसे की हमें मालूम है की अलंकार शब्द दो शब्दों से अलम + कार से मिलकर बना है। अलंकार शब्द वाक्य की शोभा बढ़ाता है। इसका शाब्दिक अर्थ सजावट, आभूषण, श्रृंगार या गहना होता है। चुकी एक वाक्य में बहुत सी चीज़े शामिल होती है। शब्दों और भावों को सुन्दर बनाने के लिए अलंकार का प्रयोग किया जाता है। जिस कारण इसको साधन भी कहाँ जाता है। अलंकार मुख्य चार प्रकार के होते है। जिनका इस्तेमाल स्थान के अनुसार अलग अलग किया जाता है। तो यदि आप Alankar Kise Kahte hai, अलंकार कितने प्रकार के होते है, जानना चाहते है। तो यह लेख आपके लिए काफी महत्पूर्ण है। इस लेख के तहत हम आपको अलंकार की परिभाषा, भेद, उदाहरण से जुड़ी जानकी देने वाले है। आप अंत तक हमारे साथ बने रहें।

Alankaar की परिभाषा
जो शब्द किसी वाक्य की शोभा बढ़ाते है। उसे अलंकार कहते है। जिस तरह से स्त्री अपनी शोभा बढ़ाने के लिए आभूषण गहने पहनती है। इस तरह से किसी रचना की शोभा बढ़ाने या काव्य की सुंदरता बढ़ाने के लिए अलंकार का उपयोग किया जाता है।
अलंकार के प्रकार
अलंकार मुख्य चार प्रकार के होते है। जिनका इस्तेमाल शब्द एवं वाक्य के अनुसार किया जाता है। तो अलंकार के प्रकार इस प्रकार है:-
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार
- पाश्चात्य अलंकार
1.शब्दालंकार
वह अलंकार जो काव्य को शब्दों के माध्यम से सजाते हैं। उस अलंकार को शब्दालंकार के नामांकित किया जाता है। यदि इसको आसान शब्दों में समझे है। तो किसी विशेष शब्द के इस्तेमाल से ही उस काव्य या रचना में सौंदर्य आ जाएगा, परन्तु उस जगह पर उसके पर्यायवाची के उपयोग से लुप्त हो जाए। उसको शब्दालंकार कहाँ जाता है। शब्दालंकार तीन प्रकार के होते हैं।
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- श्लेष अलंकार
अनुप्रास अलंकार
शब्दालंकार में पहला भेद अनुप्रास अलंकार का होता है। जो दो शब्दों से मिलकर अनु + प्रास से बनता है। यहां पर अनु का मतलब बार-बार और पास का मतलब प्रास का अर्थ होता है वर्ण है। आसान शब्दों में समझे है। जब किसी वर्ण की बार-बार आवृत्ति से पूरा वाक्य चमक उठें। वहीं अनुप्रास अलंकार होता है।
जैसे- कल कानन कुंडल मोरपखा उर पा बनमाल बिराजती है
इस वाक्य में क वर्ण की आवृत्ति हुई है।
यमक अलंकार
दूसरा भेद यमक अलंकार का है। जिस वाक्य में एक शब्द का इस्तेमाल बार बार होता परन्तु हर जगह अर्थ भिन्न भिन्न होता है। वहां पर यमक अलंकार होता है।
जैसे- कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय।
या खाए बौरात नर या पा बौराय।।
इस वाक्य में कनक शब्द का प्रयोग एक से अधिक बार हुआ है। जबकि इसमें पहले कनक का अर्थ धतूरे से है और दूसरे का अर्थ स्वर्ण से तो यह एक यमक अलंकार का है।
श्लेष अलंकार
जिस रचना के किसी वाक्य में एक ही शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं। वहां श्लेष अलंकार होता है। उदाहरण के लिए
जैसे- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरे मोई मानस चून।
यहाँ पानी शब्द का उपयोग हुआ है, जिनके अर्थ– ’कान्ति’, ‘आत्मसम्मान’ और ‘जल’ निकलते है। जिसके तीन अलग-अलग अर्थ हैं।
2. अर्थालंकार
अलंकार का दूसरा भेद अर्थालंकार होता है। जहां पर वाक्य में शोभा उसके शब्दों से नहीं बल्कि उसके अर्थ से होती है। वहां पर अर्थालंकार होता है। इस अर्थालंकार के कई भेद होते हैं। जो कि इस प्रकार है:-
- उपमा अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- द्रष्टान्त अलंकार
- संदेह अलंकार
- अतिश्योक्ति अलंकार
- उपमेयोपमा अलंकार
- प्रतीप अलंकार
- अनन्वय अलंकार
- भ्रांतिमान अलंकार
- दीपक अलंकार
- अपहृति अलंकार
- व्यतिरेक अलंकार
- विभावना अलंकार
- विशेषोक्ति अलंकार
- अर्थान्तरन्यास अलंकार
- उल्लेख अलंकार
- विरोधाभाष अलंकार
- असंगति अलंकार
- मानवीकरण अलंकार
- अन्योक्ति अलंकार
- काव्यलिंग अलंकार
- स्वभावोती अलंकार
उपमा अलंकार
जब किसी वस्तु या व्यक्ति की किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से समान स्वरूप गुणधर्म से तुलना की जाती है। तो वहां उपमा अलंकार होता है।
जैसे- हरि पद कोमल कमल से इस का उदाहरण है।
यहाँ पर भगवान के पैरों को कमल के समान कोमल बताया गया है।
रूपक अलंकार
जब उपमेय एवं उपमान में आपस में कोई अंतर नहीं दिखाई देता वहां रूपक अलंकार होता है। अर्थात उपमेय एवं उपमान के भेद को ख़त्म कर दिया जाता है।
जैसे- मैया मैं तो चन्द्र-खिलौना लैहों
यहाँ पर खिलौना और चाँद में किसी प्रकार की समानता न दिखाते हुए चंद्र को ही खिलौना बता दिया गया है।
उत्प्रेक्षा अलंकार
जहाँ पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाता है। अर्थात जहाँ पर उपमान के न होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए। वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
जैसे- सोहत ओढ़े पीत स्याम सलोने गात।
मनो नीलमनी सेल पर अतप पयो प्रभात ।।
तात्पर्य- इसमें पीले कपड़े पहने श्रीकृष्ण के सावले शरीर को उपमेय बताया है। जिसमें नीलमणि के पर्वत पर सुबह की किरणे होने की सम्भावना व्यक्त की गई है।
मानवीकरण अलंकार
जिस वाक्य में प्राकृतिक चीजें या फिर जड़ वस्तुओं को मानव जैसा सजीव वर्णन किया जाए। या जब उन पर मानवीय जैसी चेष्ठा का आरोप किया जाए। वह मानवीकरण अलंकार होगा।
जैसे- फूल हँसे कलियाँ मुस्कुराई।
यहाँ बताया गया है की फूल हंस रहे हैं और कलियाँ मुस्करा रही हैं। यानी जैसे मानव हँसते हैं। वैसे ही फूल जो प्रकृति का रूप है वो है और मुस्करा रहे हैं।
अतिशयोक्ति अलंकार
जब व्यक्ति किसी की बात को काफी बड़ा चढ़ा कर बोले। यानी किसी की प्रशंसा करते समय बात को काफी बढ़ाए। जो कि संभव नहीं हो। वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार का उपयोग होता हैं।
जैसे-हनुमान की पूँछ में, लग न पायी आग।
लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग।।
इस उद्धरण में हनुमान जी कि पूँछ में आग भी नहीं लगी कि इससे पहले ही सारी लंका जल गयी और राक्षस भाग गए थे। परन्तु ऐसा सम्भव नहीं है क्योंकि बिना उनके पूँछ में आग लगे लंका नहीं जल सकती थी।
3. उभयालंकार
वह अलंकार जोकि शब्द एवं अर्थ दोनों पर आधारित होकर उजागर होता है। वह उभयालंकार कहलाता है।
जैसे- कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।
इस अलंकार में शब्द और अर्थ दोनों है।
उभयालंकार के भेद
- संकर उभयालंकार
- संसृष्टि उभयालंकार
संकर उभयालंकार
उभयालंकार के भेद संकर अलंकार में कई अलंकार ऐसे जुटे होते है। जिनको बहुत मुश्किल से अलग किया जा सकता है।
संसृष्टि उभयालंकार
उभयालंकार के दूसरे भेद संसृष्टि अलंकार में कई अलंकार मिले रहते हैं, परन्तु उनकी पहचान में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती हैं।
Alankar in Hindi से जुड़े प्रश्न
अलंकार कितने प्रकार के होते है?
Alankar मुख्य चार प्रकार के होते है। जोकि इस प्रकार है:-
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
- उभयालंकार
- पाश्चात्य अलंकार
सोहत ओढ़े पीत स्याम सलोने गात। मनो नीलमनी सेल पर अतप पयो प्रभात कौन सा अलंकार है?
यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार का है।
अलंकार से क्या तात्पर्य है?
Alankar का मतलब आभूषण, श्रृंगार या गहना सजावट है। जैसे किसी महिला की शोभा गहने बढ़ाते है। उसी तरह से श्रृंगार हेतु अलंकार का प्रयोग होता है।